Sunday, 24 April 2016

Kalsarp Yoga : Causes and cure


काल सर्प योग : कारण एवं निवारण:-
जब जन्म कुंडली में राहु और केतु के मध्य समस्त ग्रह जाते हेँ तो कालसर्प योग कहलाता है |
          हमारे नक्षत्र मंडल में सात ग्रहों का प्रत्यक्ष रूप से भौतिक अस्तित्व है,लेकिन राहु-केतु का कोई भौतिक अस्तित्व नहीं है| यही कारण है कि इन्हें छाया ग्रह कहा जाता है|
          प्राचीन ग्रंथों के अनुसार राहु के पिता विपुचिति दानव थे और माता दानवराज हिरण्यकशिपु की पुत्री सिन्हिका थी|समुंदर मंथन के उपरांत प्राप्त अमृत का छल पूर्वक पान करने के कारण भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से राहु की सिर काट दिया था, लेकिन चूँकि उसने अमृत पान कर लिया था इसलिए वह अमर हो गया | विवशता वश भगवान ने उस दानव के कटे सिर को राहु एवं धड़ को केतु के रूप में नव ग्रहों में स्थान प्रदान किया|
          यदि फलित ज्योतिष् के अनुसार देखा जाए तो नेसर्गिक रूप से राहु और केतु,सुर्य और चंद्रमा के शत्रु हें|
बुध,शुक्र और शनि राहु के मित्र हें,जबकि गुरु सम तथा मंगल शत्रु हें| इसी परकार केतु के मित्र हें- शुक्र और मंगल | बुध और गुरु सम है और शनि इसके शत्रु हें|कन्या राहु की उच राशि है और मिथुन में २० अंश का परमोच्च तथा धनु में २० अंश का परम नीच होता है| केतु की स्वराशि मीन है और यह धनु में अंश का परमोच्च और मिथुन में अंश का परमनीच होता है| अन्य ग्रहों के समान राहु-केतु की सातवीं दृष्टि नहीं होती,केवल पाँचवीं और नवीं दृष्टि होती है|
               राहु-केतु की गति शुद्र,दिशा नेत्रित्य, पन्च्धातु ,तमोगुणी,कशाय-रस, क्रमशः काला एवं धब्बेदार मिश्रित रंग माना गया है|राहु का रत्न गोमेद और केतु का रत्न लहसुनिया है|
               राहु का परभाव शनि देवता के समान है, और इनका आघात एवं प्रहार अचूक एवं महाभ्यनक होता है|                 राहु ग्रह घमंड,राजनीति,तस्करी,षड्यंत्र,शिकार,शराब,अपहरण,कुतर्क,दादागिरी,देश निकाला,सर्प,हवा,मेथुन,म्लेच्छ,परनिन्दा,कपट,गांजा भांग,अफ़ीम,सिगरेट,विद्रोह,दुर्गुन,मजदूर,सफाई, पैथोलॉजिस्ट,गोबर,शमशान,कर्मचारी,उल्टी,विषजन्य रोग आदि का प्रतिनिधित्व करता है| जबकि केतु ग्रह जादू-टोना,इंद्रजाल,चमत्कारी कर्य,गाड़ा हुआ धन,अचानक भग्योद्य,वेद-शास्त्रों का अधिनायक,चर्म रोग,गुप्त बल,वर्णशंकार,भूख से उत्पन्न कष्ट,दादी,नाना,सोतेला पिता,दत्तक पुत्र का प्रतिनिधित्व करता है|
                इन दोनो छाया-ग्रहों का अपना परभाव नहीं होता बल्कि ये जिस ग्रह के साथ होते हैं उसी के स्वभाव के अनुसार फल प्रदान करते हैं|अकेले होने पर जिस ग्रह की राशि में होते हैं,उसी ग्रह का फल प्रदान करते हैं|

कालसर्प योग का प्रभाव :-

               काल सर्प योग से प्रभावित जातक को अनेक प्रकार की मुसीबतें, कष्ट,अपमान,झेलने पड़ते हैं| वास्तविकता यह है की एसे लोग जीवन तो जी रहे हैं, लेकिन अपने लिए नहीं बल्कि केवल दूसरों के लिए| ऐसे लोगों को हमेशा शारीरिक कष्ट लगा रहता है| पढ़ाई में रुकावट,पैसे की बर्बादी,विश्वासघात और ग़लत फहमी आदि होना इसकी पहचान मानी जाती है|इस योग के कारण अन्य खूब अच्छे अच्छे योग भी अपना पूरण फल परदान नहीं कर पाते| इस योग से प्रभावित जातक सदैव परेशान ही रहता है, उसने जो विद्या प्राप्त की है, उसका समुचित उपयोग नहीं हो पता है| वह ग़लत फहमी का शिकार रहता है, उसके पैसे की बर्बादी होती है और यहाँ तक भी होता है की उसके पास पैसे का अंबार लग जाता है, लेकिन कभी कभी वह एक रुपये के लिए भी मोहताज हो जाता है| उसे घर से बाहर रहना पड़ता है,मानसिक अशांति से जूझना पड़ता है, उसे धन प्राप्ति नहीं होती,संतान की प्राप्ति उसे दूर का ख्वाब लगती है और उसका ग्रहस्थ जीवन भी कलह युक्त हो जाता है|

- इस योग से प्रभावित जातक को निरंतर बुरे सपने आते हैं|अकाल मृत्यु का डर, अथवा कुछ अशुभ होने की आशंका मन में समाई रहती है|ऐसा जातक पूरा मन लगाकर कार्य करता है परंतु उसका फल उसे प्राप्त नहीं होता|वह जो भी कार्य करता है,उसका परिणाम उसे प्राप्त नहीं होता और यदि होता भी है तो बहुत देर से होता है| उसे जो पद-प्रतिष्ठा मिलनी चाहिए वह उसे नहीं मिलती और उसका श्रेय दूसरे ले जाते हैं|सामान्यतः ऐसे जातकों को मिलने वाले परिणाम निमाणवत हो सकते हैं:-
- भाई-बंधु रिश्तेदार आदि धोखा देते हैं| भाइयों का सुख नहीं मिलता|
- पत्नी को बार-बार गर्भ गिरने की समस्या आती है|
- ऐसा जातक आजीवन संघर्षरत रहता है|उसका भाग्य साथ नहीं देता|
- दैहिक एवं मानसिक कष्ट भोगने पड़ते हैं,स्वास्थ्य साथ नहीं देता|
- कार्य व्यवसाय में दीवाला निकल जाता है अथवा भारी क्षति उठानी पड़ती है|
- ऐसे जातकों की पैतृक संपत्ति नष्ट हो जाती है अथवा उसे ऐसी संपत्ति से वंचित कर दिया जाता है|
- घर में अकाल मृत्यु होती रहती है|
- संतान कष्ट होता है या फिर संतान का विवाह उचित समय पर नहीं होता है|
- अदालतों या थानों के चक्कर लगाने पड़ते हैं|
- ग्रह कलेश अथवा घर में कलह होती रहती है|
- पत्नी या पति अनुकूल नहीं मिलता|
- नौकरी अथवा व्यवसाय में बार-बार असफलता हाथ लगती है|
- मन अशांत रहता है और अग्यात भय बना रहता है|
- संचित धन-संपदा का अचानक समाप्त हो जाना|
- संतान सुख से असंतुष्टि,उनकी शिक्षा में बाधा आना अथवा संतान का जिद्दी एवं अनियंत्रित होना|
- जल,नदी,तालाब आदि को देखकर भय लगना|
- स्वयं के साथ दुर्घटनाएँ घटित होना|
- वायवी शक्तियों,शत्रुओं द्वारा किए गये अभिचार कर्मों से पीड़ित होना|

काल-सर्प योग क्या है:-
        पृथ्वी की दो गतियाँ होती हैं- दैनिक गति,जिसे परिभर्मण एवं वार्षिक गति, जिसे परिक्रमण कहा जाता है|पृथ्वी का सूर्य की ओर घूमने का मार्ग तथा चंद्र का पृथ्वी के चारों ओर घूमने का मार्ग अलग अलग है|जहाँ ये एक दूसरे को क्रॉस करते हैं,उसी छाया को राहु केतु कहा जाता है|राहु केतु की अपनी कोई राशि नहीं होती|राहु का जन्म नक्षत्र भारणी और केतु का आशलेषा कहा गया है|भारणी का देवता काल आशलेषा का देवता सर्प है|इन्ही काल सर्प के मिलने से 'कालसर्प योग' नामक योग उत्पन्न होता है|सर्प का मुख राहु तथा पुंछ केतु हैं|
         कुंडली में समस्त ग्रह एक भाव में सकते हैं लेकिन राहु केतु कभी एक भाव में नहीं सकते|वे सदैव एक दूसरे से सातवे भाव अर्थात १८० अंश पर ही रहते हैं|यही कारण है कि सर्प के सिर वाले भाग को राहु धड़ वाले भाग को केतु की सन्ग्या दी जाती है|
        राहु नागलोक का प्रतिनिधित्व करता है|जातक की मृत्यु होने के उपरांत यदि उसकी वासना परिवार में ही अटकी रहती है तो वह नाग योनि में ही रहता है|वासनाओं के कारण जब उसका पुनः जन्म होगा तो उसकी कुंडली में कालसर्प योग होगा|इसके अतिरिक्त ज्योतिषीय ग्रंथों में अनेक प्रकार के शापों का वर्णन आता है,जिनमें- पूर्वजन्म कृत पितृ शाप,गुरुशाप,पत्निशाप,प्रेतशाप,सार्प शाप आदि प्रमुख हैं|जो जातक सर्प शाप से ग्रसित होता है,उसकी कुंडली में कालसर्प योग होता है|
        सामान्यतः करीब ५७६ प्रकार के कालसर्प योग बनते हैं,लेकिन यदि शनि के संबंध बनाकर पुष्टि करें तो हज़ारों प्रकार के कालसर्प योग बनते हैं|मुख्यतः यह योग दो प्रकार से बनता है|राहु के मुख की ओर से समस्त ग्रह आएँ तो सम्मुख कालसर्प योग और राहु के दाईं ओर से समस्त ग्रह आएँ तो उसे विपरीत काल सर्प योग कहा जाता है|इन्हें उदित एवं अनुदित भी कहा जाता है|उदित कालसर्प योग मुख की ओर से बनता है,जो बहुत कष्टप्रद होता है क्यूंकी राहु सदैव वक्री होता है|इसकी अपेक्षा अनुदित कालसर्प योग कम कष्ट देने वाला होता है|

जब कोई ग्रह राहु केतु के साथ हो और राहु से कम अंशों पर हो तो वह कालसर्प योग कष्टदायक होता है,लेकिन यदि राहु से अधिक अंशों पर स्थित ग्रह साथ हो तो वह कालसर्प भंग योग की श्रेणी में आकर कम कष्टदायी हो जाता है|
      कालसर्प योग को अशुभ योग माना जाता है लेकिन ऐसा नहीं है|कभी कभी ऐसा योग जातक को बुलंदियों पर भी पहुँचा देता है|. जवाहर लाल नेहरू,सम्राट अकबर,राजीव गाँधी,सचिन तेंदुलकर आदि इसके उदाहरण हैं|परंतु यह योग कितना अशुभ होगा, इसकी गणना जातक की कुंडली के गहन अध्ययन से ही संभव है|
             वास्तविकता यह है कि ८० प्रतिशत व्यक्ति कालसर्प योग से प्रभावित होते हैं| जिनके भी जन्मांग में यह योग होता है उन्हें अनेक प्रकार के कष्ट,अपमान,मुसीबतें सहने पड़ते हैं|एक इस योग के कारण दूसरे अनेक अच्छे योग भी अपना फल प्रदान नहीं कर पाते हैं|


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