देवाकर्षण मन्त्र:-
“ॐ नमो रुद्राय नमः। अनाथाय बल-वीर्य-पराक्रम प्रभव कपट-कपाट-कीट मार-मार हन-हन पथ स्वाहा।”
विधिः- कभी-कभी ऐसा होता है कि पूजा-पाठ, भक्ति-योग से देवी-देवता साधक से सन्तुष्ट नहीं होते अथवा साधक बहुत कुछ करने पर भी अपेक्षित सुख-शान्ति नहीं पाता। इसके लिए यह ‘प्रयोग’ सिद्धि-दायक है।
उक्त मन्त्र का ४१ दिनों में एक या सवा लाख जप ‘विधिवत’ करें। मन्त्र को भोज-पत्र या कागज पर लिख कर पूजन-स्थान में स्थापित करें। सुगन्धित धूप, शुद्ध घृत के दीप और नैवेद्य से देवता को प्रसन्न करने का संकल्प करे। यम-नियम से रहे। ४१ दिन में मन्त्र चैतन्य हो जायेगा। बाद में मन्त्र का स्मरण कर कार्य करें। प्रारब्ध की हताशा को छोड़कर, पुरुषार्थ करें और देवता उचित सहायता करेगें ही, ऐसा संकल्प बनाए रखें।
“ॐ नमो रुद्राय नमः। अनाथाय बल-वीर्य-पराक्रम प्रभव कपट-कपाट-कीट मार-मार हन-हन पथ स्वाहा।”
विधिः- कभी-कभी ऐसा होता है कि पूजा-पाठ, भक्ति-योग से देवी-देवता साधक से सन्तुष्ट नहीं होते अथवा साधक बहुत कुछ करने पर भी अपेक्षित सुख-शान्ति नहीं पाता। इसके लिए यह ‘प्रयोग’ सिद्धि-दायक है।
उक्त मन्त्र का ४१ दिनों में एक या सवा लाख जप ‘विधिवत’ करें। मन्त्र को भोज-पत्र या कागज पर लिख कर पूजन-स्थान में स्थापित करें। सुगन्धित धूप, शुद्ध घृत के दीप और नैवेद्य से देवता को प्रसन्न करने का संकल्प करे। यम-नियम से रहे। ४१ दिन में मन्त्र चैतन्य हो जायेगा। बाद में मन्त्र का स्मरण कर कार्य करें। प्रारब्ध की हताशा को छोड़कर, पुरुषार्थ करें और देवता उचित सहायता करेगें ही, ऐसा संकल्प बनाए रखें।
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